Tuesday, May 4, 2010

बिहार में पनप रहा है तेलंगाना

मिथिला पर विमर्श की पहली कड़ी में हम पहचाने जा रहे पत्रकार सुशांत झा का लेख प्रकाशित कर रहे हैं, और इसके लिए उनकी सहमति भी ले ली गई है। य़ह लेख जनतंत्रडॉटकॉम में छपा है और हम साभार मिथिला के वास्ते छाप रहे हैं...

नीतीश राज में 11 फीसदी विकास के डंके का शोर अब कर्कश लगने लगा है। कर्कश सिर्फ़ इसलिए नहीं कि राज्य और नेशनल मीडिया उसे करीने से छाप रहा है, कर्कश इसलिए कि इस विकास में ख़तरनाक किस्म की क्षेत्रीय असामनता के बीज छुपे हैं जिन्हें नीतीश सरकार पल्लवित करने में दिन-रात एक कर रही है।


नीतीश सरकार विकास के उसी मॉडल पर आगे बढ़ रही है जिस पर कभी चंद्रबाबू नायडू काम करते थे। पटना में बिहार का पूरा भ्रष्ट पैसा जमा हो गया है। कुछ आंकड़े आंखें खोल देने के लिए काफी है। पटना में एक फ्लैट की कीमत 25 लाख से लेकर 65 लाख रुपये तक पहुंच गई है जो दिल्ली-एनसीआर के बराबर है। पटना उन शहरों में शुमार हुआ है जहां से हवाई यात्रियों की संख्या में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इंडिया टुडे के एक सर्वे के मुताबिक पटना में इंटरनेट की पहुंच (प्रतिव्यक्ति फीसदी में) दिल्ली से थोड़ी ही कम है! ये विकास की भयावह तस्वीर है, जो बताती है कि विकास कहां केंद्रित हो रहा है।


लेकिन जश्न के इन पलों के बीच एक औसत बिहारी जो चीज नहीं देख पा रहा वो ये कि बिहार में – गंगा से उत्तर और गंगा से दक्षिण – आर्थिक विषमता की बड़ी खाई पैदा की जा रही है जिसे जाने अनजाने नीतीश सरकार बढ़ावा दे रही है। ख़ासकर मिथिलांचल का इलाका इस विकास की दौड़ में अपने को असहाय पा रहा है। आप नीतीश सरकार के हाल की योजनाओं पर गौर कीजिए-आपको पता लग जाएगा कि नीतीश सरकार किस तरह अपनी सारी ताक़त मगध और भोजपुर के इलाकों में केंद्रित कर रही है।


नीतीश कुमार अक्सर छुट्टी मनाने राजगीर जाते हैं - तर्क दिया जाता है कि ऐसा करके नीतीश, इस पर्यटन स्थल को दुनिया की निगाहों में लाना चाहते हैं। नीतीश ने नालंदा विश्वविद्यालय, एनटीपीसी बाढ़ और नालंदा आयुद्ध कारखाना अपने कार्यकाल (केंद्र और राज्य दोनों के दौरान) में शुरू किए। हाल ही में राजगीर को नीतीश कुमार ने तकरीबन 100 करोड़ का पैकेज दिया साथ ही उनके द्वारा शहरों में जलजमाव से मुक्ति के लिए दिए गए पैकेज में पटना, गया, नालंदा और मुंगेर का नाम अहम है। नीतीश कुमार गया को फोकस कर रहे हैं – यूं ये काम ग़लत भी नहीं है। ये इलाके बिहार की पहचान हैं। लेकिन ये महज संयोग नहीं है, कि नीतीश का घर और उनका प्रभावक्षेत्र इन्हीं इलाकों में पड़ता है!


लेकिन यह प्रवृति ख़तरनाक रूप इसलिए लेती जा रही है कि सूबे का सबसे ज़्यादा आबादी वाला और दरिद्र इलाका मिथिलांचल नीतीश की आंखों से ओझल हो जाता है। नीतीश जब रेल मंत्री थे तो उस वक्त कोसी पर महासेतु बनाने की घोषणा की गई थी – वो योजना पहले लालू और अब ममता की फाइलों में छटपटा रही है – उस इलाके के लिए नीतीश ने शायद यही एक बड़ा काम किया था। मगर उस पर भी अमल नहीं हो सका।


मिथिलांचल की त्रासदी यह है कि यह बाढ़ वाले इलाके में पड़ता है जिसका निदान केंद्र और राज्य के सहयोग के बिना मुमकिन नहीं। पिछले साल कोसी की त्रासदी के बाद भी पटना और दिल्ली की सरकारों ने सिवाय जुबानी लड़ाई के इस मामले में कुछ नहीं किया। नीतीश के लिए ये सुकूनदेह बात है कि मामला केंद्र के जिम्मे हैं। उस इलाके को पिछले कई दशकों में एक मात्र बड़ा प्रोजेक्ट देने की जो घोषणा की गई है वो है अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी की एक शाखा। इस इलाके की एक मात्र जीवनदायिनी रेखा जो बनने वाली है वो है – स्वर्णिम चतुर्भुज राष्ट्रीय राजमार्ग योजना के तहत बनने वाली ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर…जो चार लेन की सड़क होगी। ये केंद्र सरकार का प्रोजेक्ट है।
ऐतिहासिक रुप से बिहार की राजनीति पर दबदबा रखनेवाला ये इलाका आज अपने अतीत के नेताओं को तो कोस ही रहा है, साथ ही मौजूदा प्रशासन में भी छला हुआ महसूस कर रहा है। घनघोर पिछड़ापन, विशाल भौगोलिक क्षेत्र और विराट आबादी के साथ ये इलाका बड़ी राजनैतिक संभावना बटोरे हुए है – इसमें शक़ नहीं। लेकिन ये मानने का मन नहीं करता कि नीतीश सरकार सिर्फ़ इसी ‘संभावित भय’ की वजह से इस इलाके के प्रति अपनी आंख मूंद रही है – खासकर तब जब सत्ताधारी पार्टी को यहां सबसे ज़्यादा समर्थन मिला है।


आप बदलते बिहार में निवेश के सुरक्षित ठिकाने खोजिए। जो ठिकाने पनपने लगे हैं वो गंगा से दक्षिण हैं। सरकारी प्रोजेक्ट तो फिर भी मानवीय आधार पर बनाए जा सकते हैं, लेकिन निजी निवेश अपना माकूल जगह तलाशती है। वे सारी जगहें मगध या भोजपुरी इलाके (खासकर गंगा से दक्षिण का भोजपुरी इलाका) हैं। हाल ही में धान के भूसे से बिजली बनाने का प्रस्ताव गया के लिए आया है तो कोयला आधारित बिजली घर का प्रोजेक्ट औरंगाबाद के लिए।

सुशांत झा नीतीश सरकार बिहार में केंद्रीकृति विकास को बढ़ावा दे रही है। सारा कुछ पटना या इसके इर्दगिर्द समेटा जा रहा है। चाहे वो एम्स हो… या आईआईटी… या फिर चंद्रगुप्त प्रवंधन संस्थान या फिर चाणक्या लॉ स्कूल। प्रस्तावित नालंदा विश्वविद्यालय भी इसी इलाके में है और नीतीश का प्रभाव क्षेत्र भी।


ऐसे में ये साफ़ है कि भावी बिहार में पिछड़ा हुआ मिथिलांचल एक नया “तेलंगाना” बनने वाला है। जिसे वर्तमान प्रशासन बड़ी बारीकी से आगे बढ़ा रही है। नीतीश सरकार, जाने-अनजाने बाढ़ की समस्या से उसी तरह मुंह मोड़ रही है जैसा पिछले 60 साल में तमाम सरकारों ने किया है। वो केंद्र से इस मसले पर कोई पंगा नहीं लेना चाहती।

सुशांत झा